एक दम ग़लत। कोशिश करने वालों की जितनी हार होती है, उनका जितना मज़ाक़ उड़ता है, उनका जितना शोषण होता है, उतना शायद ही किसी का होता होगा। बाहर के दृष्टिकोण से देखें तो वो हार पाल हारते हैं। उनको बेवक़ूफ़ कहा जाता है। अलग अलग नाम से बुलाया जाता है। हार अगर नहीं होती तो उनके भीतर। हार अगर नहीं होती तो उनकी खुद की खुद से। आप तय करो की आपको किस श्रेणी में आना है? आप तय करो की आपकी ज़िंदगी की जंग आख़िर है किस के साथ? खुद के भीतर से या बाहरी समाज से।

“सब उगते सूरज को ही अगर सलाम करते हैं, तो तुम वो सूरज क्यूँ नहीं बन जाते? कैसे बनोगे? उसके लिए सूरज जैसे तपना जो पड़ेगा”!

#AJinspires

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