क्या कोई जानता श्रीराम को अगर रावण होता ही नहीं तो?

क्या कोई जानता रामायण को अगर रावण होता ही नहीं तो?

क्या कोई जान पाता राम के संघर्ष को अगर रावण होता ही नहीं तो?

 

यहाँ रावण से मेरा तात्पर्य आप के भीतर की नकरात्मकता से भी है और आपके जीवन में चल रही किसी भी तरह की उथल पुथल से भी है। इंसान के रूप में तो जीवन भरा ही पड़ा है रावण से, उस पर तो मैं बोलूँ ही क्या।

विफलताओं के बिना कौन महत्व देगा सफलताओं को। और कर भी क्या लोगे ऐसी सफलता का जो मिली ही थाली में हो।

संघर्ष के बिना कौन जानेगा जीतने की मिठास को?

आप समझिए, आपके जीवन में रावण के होने का मतलब ही यही है की आपको श्री राम बनना है। उनसे लड़ना है। इन पर विजय प्राप्त करना है। इसके लिए वनवास झेलना पड़े तो झेलो। राक्षसों से लड़ना पड़े तो लड़ो। अपनों से दूर होना पड़े तो हो जाओ।

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